कथन - संपा. संज्ञा उपाध्याय 'कथन' के ताजा अंक 66 अप्रैल-जून 2010 में शरद कोकास की कविताएं ख्यात कवि लीलाधर मण्डलोई की विशेष टिप्पणी के साथ.... दंगों के तल्ख यथार्थ और त्रासद दृश्यों पर भिन्न मिजाज और शिल्प की उल्लेखनीय कविताएं इसी अंक में अशोक कुमार पाण्डेय की लम्बी कविता 'मां की डिग्रियां' पठनीय कविता है।
समकालीन भारतीय साहित्य - संपा। ब्रजेन्द्र त्रिपाठी पत्रिका के ताजे अंक 148 मार्च-अप्रैल 10 को सुपरिचित कवियित्री अनामिका की कविता 'मातृभाषा' और यश मालवीय के गीत पठनीय बनाते हैं। वरिष्ठ कवि देवव्रत जोशी एवं मीठेश निर्मोही ने भी ख्याति के अनुरूप कवितायें लिखी हैं।
बया - संपा। गौरीनाथ अपने पहले ही अंक से 'बया' ने पाठक वर्ग में पहचान और विश्वसनीयता हासिल की है। ताजा अंक जनवरी-मार्च 2010 प्रतिरोध की संस्कृति और राजनीति पर केन्द्रित है। कविताओं के मामले में इस अंक में वरिष्ठ कवि विष्णु नागर, राग तेलंग, नीलोत्पल और रेखा चमोली की पठनीय कविताएं हैं। वरवर राव की कविताओं का आर. शांता सुंदरी ने श्रम से अनुवाद किया है. प्रदीप कांत भी अपनी आठ गजलों के साथ उपस्थित हैं।
परिन्दे - संपा। राघव चेतन राय ताजा अंक - 6 फरवरी-मार्च 2010 अशोक कुमार पाण्डेय की कविताएं 'परिन्दे' के इस अंक की उपलब्धि कही जा सकती है। 'सबसे बुरे दिन', 'चाय, अब्दुल और मोबाइल', 'छोटे शहर की नदी', 'विष नहीं मार सकता हमें' के अलावा गुजरात पर तीन उल्लेखनीय कवितायें
परिकथा - संपा. शंकर अंक मार्च-अप्रैल 2010 'परिकथा' के इस अंक में महत्वपूर्ण कवि विजेन्द्र की कविताओं को पढ़ना एक नये अनुभव संसार से गुजरना है
अकार - संपा। गिरिराज किशोर ताजा अंक - 27 इस समय हिंदी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण वैचारिक पत्रिका के रूप में 'अकार' स्थापित हो चुकी है। अंक 25 से पत्रिका नये स्वरूप और कलेवर में निकल रही है। ताजा अंक 27 में युवा पीढ़ी के विश्वसनीय कवि अजेय की चार लम्बी और महत्वपूर्ण कविताओं को पढ़ा जाना चाहिये। नये विषय और विचार की ये कवितायें हिमालय के घूमंतू जीवन का दुःख का सिर्फ ब्यौरा भर नहीं देती, हमारे समय का सच और उस समय का विश्वसनीय अनुवाद करती हैं. इन कविताओं के लिए श्री अजेय को बधाई।
प्रगतिशील वसुधा - संपा. कमला प्रसाद ताजा अंक 84 प्रगतिशील लेखक संघ की पत्रिका 'प्रगतिशील वसुधा' के नये अंक में वरिष्ठ कवि विष्णु नागर के ताजा संग्रह 'घर से बाहर घर' की 10 कविताओं और उनसे लीलाधर मण्डलोईजी की बातचीत इस अंक का विशेष संयोजन है। एक कवि और एक व्यक्ति के रूप में एक रचनाकार की ईमानदार पड़ताल, निजता की हद तक एक्सपोज करने की कोशिश इस बातचीत में है. इसे गंभीरता से पढ़ा जाना चाहिए।
वागर्थ - संपा. - विजय बहादुर सिंह
अप्रैल 10 अंक में उमाशंकर चौधरी की दो कवितायें 'प्रधानमंत्री को पसीना', और 'पुरूष की स्मृति में कभी बूढ़ी नहीं होती लड़कियां' पठनीय हैं। उमाशंकर युवा पीढ़ी के उन कवियों में है जिन्हें भविष्य की हिंदी कविता उम्मीद की तरह देखती है।
तद्भव - संपा.: अखिलेश
तद्भव अंक 21 में प्रकाशित सभी कविताएँ पठनीय हैं। चयन के मामले में अखिलेश जी कोई कोताही नहीं बरतते। अंक में ऋतुराज, तुषार धवल और हरीशचंद्र पाण्डेय भी अपनी उम्दा रचनाओं के साथ मौजूद हैं।