तद्भव
का नवम्बर 2018 अंक कईं मायनों में किसी विशेषांक से कम नहीं है। विश्वनाथ त्रिपाठी
और ममता कालिया के पूर्व अंकों से जारी आत्मकथात्मक लेख के अतिरिक्त शिरीष खरे ने
नर्मदा पर रोचक यात्रा वृत्तांत लिखा है। तरूण भटनागर और प्रवीण कुमार की कहानियों
के साथ अनुकृति उपाध्याय की कहानी भी अपनी भाषा से आपको हैरत में डाल देगी। कविताओं
में इस बार सुपरहिट कलेक्शन है, अनामिका, बद्रीनारायण, नीलेश रघुवंशी, संजय मिश्र के साथ युवा कवि अविनाश मिश्र
और मिथिलेश कुमार राय की कवितायें है। इन्हीं के बीच विहाग वैभव की कविताओं ने भी
मुझे बहुत प्रभावित किया। अंक में शामिल विहाग की एक कविता ‘हत्या
पुरस्कार के लिए प्रेस विज्ञप्ति’
हत्या
पुरस्कार के लिए प्रेस विज्ञप्ति
वे कि जिनकी आंखों में
घृणा
समुद्र सी फैली है अनंत
नीली काली
जिनके हृदय के गर्भगृह
विधर्मियों की चीख
किसी राग की तरह सध रही
है सदी के भोर ही से
सिर्फ और सिर्फ वही होंगे
योग्य इस पुरस्कार के
जुलूस हो या शांति मार्च
श्रद्धांजलि हो या प्रार्थनासभा
जो कहीं भी, कभी भी
अपनी आत्मा को कुचलते
हुए पहुंच जाए
उतार दे गर्दन में खंजर
दाग दे छाती पर गोली
इससे तनिक भी नहीं पड़े
फर्क
गर्दन आठ साल की बच्ची
की थी
छाती अठहत्तर साल के
साधू की थी
देश के ख्यात हत्यारे
आएं
अपना अपना कौशल दिखाएं
अलग अलग प्रारूपों में
भिन्न भिन्न पुरस्कार पाएं
मसलन
बच्चों की हत्या करें
चिकित्साधिकारी बनें
स्त्रियों की हत्या करें
सुरक्षाधिकारी बनें
विधर्मियों की लाशें कब्रों
से निकालें फिर हत्या करें
मुख्यमंत्री बनें
देश की छाती में धर्म
का धुंआ भरकर देश की हत्या करें
प्रधानमंत्री बनें
इच्छुक अभ्यर्थी हत्या
पुरस्कार के लिए
नि:शुल्क आवेदन करें
और आश्वस्त रहें
पुरस्कार निर्णय की प्रक्रिया
में
बरती जाएगी पूरी लोकतांत्रिकता।